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श॒ग्धि पू॒र्धि प्र यं॑सि च शिशी॒हि प्रास्यु॒दर॑म् । पूष॑न्नि॒ह क्रतुं॑ विदः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śagdhi pūrdhi pra yaṁsi ca śiśīhi prāsy udaram | pūṣann iha kratuṁ vidaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

श॒ग्धि । पू॒र्धि । प्र । यं॒सि॒ । च॒ । शि॒शी॒हि । प्रासि॑ । उ॒दर॑म् । पूष॑न् । इ॒ह । क्रतु॑म् । वि॒दः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:42» मन्त्र:9 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:25» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:8» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पूषन्) सभासेनाधिपते ! आप हम लोगों के (शग्धि) सुख देने के लिये समर्थ (पूर्धि) सब सुखों की पूर्त्ति कर (प्रयंसि) दुष्ट कर्मों से पृथक् रह (शिशीहि) सुख पूर्वक सो वा दुष्टों का छेदन कर (प्रासि) सब सेना वा प्रजा के अङ्गों को पूरण कीजिये और हम लोगों के (उदरम्) उदर को उत्तम अन्नों से (इह) इस प्रजा के सुख से तथा (क्रतुम) युद्ध विद्या को (विदः) प्राप्त हूजिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मंत्र में श्लेषाऽलंकार है। सभा सेनाध्यक्ष के विना इस संसार में कोई सामर्थ्य को देने वा सुखों से अलंकृत करने पुरुषार्थ को देने चोर डाकुओं से भय निवारण करने सबको उत्तम भोग देने और न्यायविद्या का प्रकाश करनेवाला अन्य नहीं हो सकता इससे दोनों का आश्रय सब मनुष्य करें ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(शग्धि) सुखदानाय समर्थोऽसि। अत्र बहुलं छन्दसि इति श्नोर्लुक्। (पूर्धि) प्रीणीहि सर्वाणि सुखानि संप्राप्नुहि (प्र) प्रकृष्टार्थे (यंसि) यच्छ। दुष्टेभ्यः कर्मभ्य उपरतोऽसि। अत्र लोडर्थे लट्। (च) समुच्चये (शिशीहि) सुखेन शयनं कुरु। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम्। (प्रासि) सर्वाणि सेनांगानि प्रजांगानि च प्रपूर्धि (उदरम्) #श्रेष्ठैर्भोजनादिभिस्तृप्यतु (पूषन्) सेनाध्यक्ष (इह) प्रजासुखे (क्रतुम्) युद्धप्रज्ञां कर्म वा (विदः) प्राप्नुहि ॥९॥ #[लडरम्। सं०]

अन्वय:

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे पूषन् सभासेनाद्यध्यक्ष ! त्वं सेनाप्रजांगानि शग्धि पूर्द्धि प्रयंसि शिशीहि नोऽस्माकमुदरं चोत्तमान्नैरिह प्रासि प्रपूर्धि क्रतुं विदः ॥९॥
भावार्थभाषाः - नहि सभासेनाध्यक्षाभ्यां विनेह कश्चित्सामर्थ्यप्रदः सुखैरलंकर्त्ता पुरुषार्थप्रदश्चोरदस्युभयनिवारकः सर्वोत्तमभोगप्रदो न्यायविद्याप्रकाशकश्च विद्यते तस्मात्तस्यैवाऽश्रयः सर्वैः कर्त्तव्यः ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. सभा, सेनाध्यक्षाशिवाय या जगात कुणी सामर्थ्य देणारा, सुखाने अलंकृत करणारा, पुरुषार्थाला वाव देणारा, चोर डाकूंपासून भयाचे निवारण करणारा, सर्वोत्तम भोग देणारा, न्यायविद्येचा प्रकाश करणारा दुसरा कुणी होऊ शकत नाही. यामुळे त्याचा आश्रय सर्व माणसांनी घ्यावा. ॥ ९ ॥